बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-22

पिछला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-21

मानसी के साथ डाक्टर मालिनी का सही वक़्त गुज़रा था। डाक्टर मालिनी और मानसी ने मस्त चुदाई का खेल खेला था। डाक्टर मालिनी ने आलोक बन कर मानसी के ऊपर लेट कर मानसी की चूत पर खूब धक्के लगाए थे। चुदाई के दौरान चूत, फुद्दी, गांड, भोसड़ा जैसे शब्दों का खुल कर इस्तेमाल किया था।

अब रागिनी के आने का प्रोग्राम था। मानसी के जाने के बाद अगले दिन मानसी की मम्मी रागिनी का फोन आ गया। रागिनी के साथ डाक्टर मालिनी का शनिवार को मिलने का प्रोग्राम बन गया। अब आगे।

“रागिनी से बात करने के बाद जैसे ही मैंने फोन बंद किया मोबाइल की घंटी फिर से बज गयी। देखा तो संदीप सोलंकी का फोन था। चुदाई वाले खिलौनों वाला संदीप सोलंकी”।

“संदीप का फोन देख कर मुझे बड़ी हैरानी सी हुई। संदीप का फोन कभी भी नहीं आता था, हमेशा मैं ही उसे फोन करती थी जब कभी मुझे अपने गांड चूत में लेने वाले पुराने हो चुके खिलौने बदलने होते थे, या मुझे कुछ नए खिलौने मंगवाने होते थे – अपने लिए या किसी और के लिए – जैसे आगरा वाली नसरीन और मानसी के लिए मंगवाए थे”।

“खैर मैंने फोन उठाया और बोली, “हां संदीप बोलो, आज कैसे फोन किया”?

“उधर से संदीप बोला, “नमस्ते मैडम, कैसी हैं आप”?

“मैंने भी जवाब दिया, “मैं ठीक हूं, बोलो कुछ काम था क्या”?

“मेरी हैरानी अभी भी कम नहीं हो रही थी। मई सोच रही थी कि आखिर संदीप ने फोन ही क्यों किया। क्या मुझे चुदाई के लिए पटाने की कोशिश कर रहा था? अगर ऐसा था भी तो मेरा अभी भी संदीप से चुदाई करवाने का मन नहीं था। मैं संदीप को चुदाई से पहले अभी कुछ और परखना चाहती थी”।

“मैंने फोन पर कहा, “मैं तो ठीक हूं संदीप, तुम बताओ कैसे फोन किया? कुछ ख़ास काम था क्या”?

“संदीप बोला, “मैडम एक बिल्कुल नई तरह की चीज आयी है। मैंने सोचा सब से पहले आप को ही दिखाता हूं”।

“संदीप की आवाज में मिली-जुली अजीब सी हंसी और कुछ उतावलापन सा था”।

“नई तरह की चीज, मतलब नई तरह का चुदाई का खिलौना। मैंने सोचा ऐसा भी नया क्या होगा। चूत में लेने वाला मोटा लंड मेरे पास था। गांड और चूत में लेने वाला “C” की तरह का खिलौना भी मेरे पास था और चूत का दाना चूसने वाला भी था। तो अब नया क्या आ गया”?

“लेकिन संदीप की ये “नई तरह की चीज” वाली बात सुन कर मेरी चूत में खुजली मच गयी और चूत गीली होने लग गयी”।

“मैंने संदीप से कह दिया, “नई तरह की चीज? कुछ ख़ास है क्या”?

“संदीप उसी अंदाज में बोला, “ख़ास ही है मैडम। आपके पास नहीं है अब तक। ये नया वाला आता तो मेरे पास पहले भी था, पर आज कल एक-दम इसकी मांग बहुत बढ़ गयी है। इसलिए मैंने सोचा आप को भी दिखा दूं। हो सकता आप भी लेना चाहें”।

“मेरी उत्सुकता बढ़ गयी। मैंने सोचा ऐसा भी क्या होगा ये। मैंने संदीप से कहा, “ठीक है संदीप ले आओ, कब लाओगे”?

“संदीप तो जैसे घोड़े पर सवार था। एक-दम से बोला, “कब क्या मैडम मैं अभी आता हूं। आधे घंटे में पहुंचता हूं आपके पास”।

“संदीप मुझे कुछ ज्यादा ही उतावला लग रहा था। ये उतावलापन खिलौना दिखाने का था या फिर चुदाई के चक्कर में संदीप कुछ आगे बढ़ना चाहता था”।

“मैंने अपनी चूत में खुजली की और संदीप से कहा, “ठीक है संदीप आ जाओ। देखें क्या नई तरह की चीज आयी है”।

“संदीप ने फोन बंद किया और मैं पेशाब करने बाथरूम चली गयी। पेशाब करके और चूत की धुलाई करके मैं क्लिनिक में आ गयी और प्रभा को चाय के लिए बोल कर संदीप का इंतजार करने लगी”।

“ठीक आधे घंटे के बाद चौकीदार आया और उसने मुझे संदीप के आने की खबर दी। मैंने संदीप को क्लिनिक में ही बुलवा लिया, और प्रभा को संदीप के लिए भी चाय लाने के लिए फोन कर दिया”।

“संदीप आया, उसके हाथ एक थोड़ा बड़ा सा बॉक्स था। मैंने सोचा रबड़ के लंड का बॉक्स तो इतना बड़ा नहीं होता था। मुझे लगा कुछ ही तरह की चीज है”।

मैंने संदीप से कहा, “बैठो संदीप”।

“संदीप ने बॉक्स मेज पर रख दिया और सामने वाली कुर्सी पर चुपचाप बैठ गया”।

“मैं भी चुप-चाप प्रभा का इंतजार करने लगी”।

“पांच मिनट में ही प्रभा आ गई और चाय की ट्रे मेज पर रख कर वापस चली गयी”।

“मैंने चाय का एक कप संदीप के हाथ में पकड़ा दिया और बोली, “क्या लाये हो संदीप, क्या ख़ास तरह की चीज है? दिखाओ”?

“इससे पहले मैंने कभी भी संदीप को चुदाई के खिलौने का डिब्बा खोलने के लिए नहीं कहा था। पता ही होता था कि चूत में लेने वाला या गांड में लेने वाला लंड ही होगा”।

“जब मैंने कहा, “क्या लाये हो संदीप, क्या ख़ास तरह की चीज है? दिखाओ, तो संदीप ने मेरी बात सुन कर थोड़ा हैरान सा हुआ”।

“हैरानी से चाय का कप पकड़ते हुए कहा, “डिब्बा खोलूं क्या मैडम”? कहने के साथ ही संदीप ने पेंट में अपने लंड को ठीक किया”।

“मैंने मन ही मन सोचा, लंड खड़ा होने लगा है इसका – साला ठरकी भोसड़ी का”।

“संदीप से मैं चूत और गांड में लेने वाले इतने खिलौने मंगवा चुकी थी कि अब इन खिलौनों की बात करते हुए हमे शर्म या झिझक महसूस नहीं होती थी”।

“मैंने संदीप से कहा, “खोलो, देखें क्या नया है”।

“संदीप ने जल्दी से अपना चाय का कप खाली किया, और बॉक्स उठा कर खोले लगा”।

“गत्ते के बॉक्स के अंदर प्लास्टिक के दो और बॉक्स थे – बिल्कुल एक जैसे। संदीप ने एक बॉक्स मेरे हाथ में पकड़ा दिया और दूसरा बॉक्स खुद खोलने लगा। लंड वाली जगह पर संदीप की पेंट का उभार बढ़ता जा रहा था”।

“मैंने बॉक्स खोला और अंदर का सामान निकाल लिया। संदीप भी अपने हाथ वाला बॉक्स खोल चुका था ”।

“ये एक इलास्टिक की गुलाबी रंग की निक्कर की तरह कि चड्डी थी जिसके आगे सात रबड़ इंच का लंड लगा हुआ था, और लंड के नीचे रबड़ के दो टट्टे लटक रहे थे। बिल्कुल असली टट्टों की तरह के। गौर से देखा तो निक्कर के पीछे अंदर की तरफ भी कोइ छः इंच लम्बा और डेढ़ पौने दो इंच मोटा लंड जैसा ही लगा हुआ था”।

“मैं समझ गयी कि ये दो औरतों में आपस में मस्ती करने वाले खिलौने हैं। निक्कर पहन कर पीछे की तरफ अंदर लगा हुआ लंड अपनी ही गांड में डाल लेना होता है, और आगे वाला सात इंची लंड दूसरी औरत की गांड या चूत में डाल कर चुदाई करनी होती है”।

“ये नया खिलौना हाथ में पकड़े हुए मैंने कनखियों से संदीप की तरफ देखा। संदीप भी रबड़ के लंड पर हाथ फेरता हुआ मेरी तरफ ही देख रहा था। संदीप की पेंट का उभार हुए भी बढ़ चुका था”। “जैसे ही मेरी हुए संदीप की नजरें मिली, संदीप बोला, “मैडम हैं ना बिल्कुल नयी तरह के”?

“मैं बोली कुछ नहीं, मुस्कुराते हुए बस “हूं” करते हुए सर हिला दिया”।

“मेरी मुस्कराहट ने शायद संदीप को और बेशर्म कर दिया। संदीप के एक हाथ में रबड़ का लंड था। दूसरे हाथ से संदीप ने अपना लंड पेंट में ठीक से बिठाते हुए कहा, “मैडम इसे कहां ट्राई करेंगी”?

“संदीप का मतलब था कि क्या मेरी कोइ ऐसी लड़की फ्रेंड है जिसकी चूत या गांड में इस नए खिलौने को डाल कर चुदाई के मजे दिए जाएं, या फिर मेरी वो फ्रेंड इस मेरी चूत या गांड में डाले और मुझे चुदाई के मजे दे”।

“रबड़ के लंड हम दोनों के हाथ में थे। दोनों को ही पता था कि ये क्या हैं और इनका क्या करना है। शर्माने का तो सवाल ही पैदा नहीं होती था”।

“मैंने हंसते हुए बोल ही दिया, “तेरे ऊपर ही ना ट्राई करूं पहले”?

संदीप भी हंसते हुए बोला, “मैडम आप भी मजाक करती हैं। मेरे लिए नहीं है ये”।

“मैंने बात को आगे ना बढ़ाते हुए रबड़ का लंड वापस बॉक्स में रखते हुए दराज में से चेकबुक निकाली और संदीप से पूछा, “ये बता कितने के हैं”।

“संदीप लंड खुजलाता हुआ बोला, “नहीं मैडम इसका कुछ नहीं। ये मेरी तरफ से आपको गिफ्ट हैं”।

मैंने भी उसी तरह मुस्कुराते हुए, संदीप से बोला, “गिफ्ट? किस खुशी में गिफ्ट दे रहा है संदीप”?

संदीप बोला, “बस ऐसे ही जी”। फिर अपने लंड को खुजलाता हुआ जरा सा आगे की तरफ झुकता हुआ बोला, “आपने बहुत ऐसे वाले खिलौने लिए हैं मुझसे। अब एक बार मुझे भी सेवा का मौक़ा दीजिये”।

“ऐसे वाले खिलौने लिए हैं, सेवा का मौक़ा दीजिये”। दोनों बातों आपस में लिंक ही नहीं जुड़ रहा था”।

“संदीप पक्का ही मुझे चोदने के चक्कर में था। मगर सही-सही और साफ़-साफ़ बोल नहीं पा रहा था। शायद उम्र और रुतबे का भी फर्क था”।

“मगर एक बात तो थी, संदीप की बातें सुन सुन कर और उसके पेंट का उभार देख कर मेरी चूत तैयार होने लग गयी थी। मुझे लगा कि अगर अगर संदीप को जल्दी फारिग ना किया तो मुझे अपने कपड़े उतारने ही पड़ेंगे”।

“मैंने संदीप से थोड़ा साफ़ ही बोल दिया, “संदीप अभी तो तुम ये चेक लो, जब सही वक़्त होगा, तुम्हें सेवा का पूरा मौक़ा मिलेगा”।

“संदीप समझ गया कि उस दिन बात बनने वाली नहीं। फिर भी ढिठाई के साथ बोला, “कब मौक़ा मिलेगा मैडम”?

“मैंने भी साफ़ ही बोल दिया, “जल्दी ही। सब्र करो, सब्र का फल मीठा भी होता है और मजेदार भी”।

“ये कह कर मैंने संदीप के हाथ मैं चेक पकड़ा दिया। संदीप खड़ा हुआ तो उससे लंड वाली जगह का अपनी पेंट का उभार छुपाया नहीं जा रहा था। लेकिन इस बार संदीप ने पेंट का उभार छुपाने की कोशिश भी नहीं की, और पूरी बेशर्मी के साथ एक बार और लंड खुजलाया और बोला, “ठीक है मैडम अच्छा चलता हूं”।

“और मेरी चूत को घूरते हुए संदीप बाहर निकल गया”।

“संदीप को जाते देख कर मैंने मन ही मन सोचा इसको भी सेवा का मौक़ा दे ही देते हैं। देखें तो सही कैसी सेवा करता है”।

“दो दिन बाद शनिवार के दिन रागिनी आयी बिल्कुल ही नए अंदाज में थी। रागिनी ने हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी। ब्लाऊज हल्का पारदर्शी था और नीचे की गहरे हरे रंग की ब्रा साफ़ दिखाई पड़ रही थी”।

“ब्लाऊज के गले का कट इतना नीचा था कि आधे मम्मे दिखाई दे रहे थे। साड़ी इतनी नीची बांधी हुई थी कि जरा सी और थोड़ा नीचे हो तो चूत कि झांटों के बाल दिखाई दे जाते”। “ये तो भला था रागिनी अपनी कार से आयी थी, वरना कम से कम ऐसे कपड़ो में कानपुर में घर से बाहर निकलना तो मनचले चूतियों को चुदाई की दावत देने वाली बात होती है”।

“मैंने रागिनी से हंसते हुए कहा, “क्या बात है रागिनी आज तो बड़ा गजब ढा रही हो। पीछे-पीछे मनचलों की लाइन तो नहीं आयी”?

“रागिनी भी हंसी और मेरे सामने बैठ गयी”।

“रागिनी को मैंने मानसी के साथ हुई बातें बताई। नहीं बताया तो ये नहीं बताया कि कैसे मैंने और मानसी ने एक-दूसरे के साथ चुदाई जैसे मजे लिए, और ना ही मैंने रागिनी को चुदाई वाले खिलौनों के बारे में बताया जो मैंने मानसी को दिए थे”।

“हमारी बात-चीत चल ही रही थी। बात-चीत के बीच में ही रागिनी अपने असली वाले रंग में आ गयी। रागिनी बोली, “मालिनी जी मानसी के साथ तो आपकी बात-चीत ठीक ही रही। घर पर भी मानसी के बर्ताव में बहुत बदलाव आ गया है। अब जरा आप ये बताइये कि आज मेरा और आपका क्या प्रोग्राम है”?

“मैं समझ गयी कि रागिनी का मतलब चूत गांड के मस्ती लेने का है। मुझे इसमें क्या एतराज होना था। ऐसी मस्ती के लिए मैं तो हमेशा ही तैयार ही रहती थी”।

“मैंने रागिनी से कहा, “ये बात है? तो चलो तुम्हें आज का प्रोग्राम दिखाती हूं”।

“मैं और रागिनी पीछे वाले कमरे में चली गयी। मैंने रागिनी से कहा, “रागिनी बैठो, तुम्हें एक नई चीज दिखाती हूं, दो दिन पहले ही संदीप दे कर गया है”।

“ये कह कर मैंने संदीप का लाया हुआ इलास्टिक वाली चड्डी के ऊपर लगे हुए लंड वाला बॉक्स रागिनी के हाथ में पकड़ा दिया और दूसरा अपने हाथ में ले लिया और रागिनी से बोली, “लो खोल कर देखो, क्या है”।

“रागिनी ने बॉक्स खोला और इलास्टिक की निक्कर के साइज की चड्डी निकाल कर उलट-पलट कर देखा और फिर मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख कर बोली, “मालिनी जी ये तो दो औरतों आपस की चुदाई करने का जुगाड़ लग रहा है”।

“तभी रगिनी के हाथ में अंदर की तरफ लगा हुआ लंड भी आ गया। रागिनी मुझसे या शायद अपने आप से बोली, “और ये क्या है”?

“दुनिया भर की चुदाई करवा चुकी रागिनी को जल्दी ही समझ आ गया कि वो छोटा लंड क्या था। रागिनी मेरी तरफ देखते हुए बोली, ओह तो मालिनी जी इसे ये चड्डी पहन कर अपनी गांड में डाल लेना है और आगे वाले लंड से फिर दूसरी औरत की चुदाई करनी है”।

“मैं क्या जवाब देती। बस मैं रागिनी को देख कर मुस्कुराती रही”।

“रागिनी ने ही पूछा, “मालिनी जी आप ने ट्राई किया है ये”?

”मैंने कहा, “नहीं रागिनी अभी तक नहीं। अब तुम आ ही गयी हो तो आज करते हैं”।

“रागिनी खुश हो कर बोली, “वाह मालिनी जी, क्या बात है! आज तो मजा ही आ जाएगा”।

“तभी रागिनी कुछ सोचते हुए बोली, “मालिनी जी आप कह रही थी संदीप ने भिजवाए हैं”?

मैंने कहा, “भिजवाए नहीं, खुद ले कर आया था। ये खिलौने वो खुद ही ले कर आता है”।

“रागिनी कुछ देर सोचती रही, फिर बोली, “मालिनी जी एक बात पूछूं अगर आप बुरा ना मान जाएं तो”?

“हालांकि मैं समझ चुकी थी कि रागिनी के दिमाग में क्या चल रहा था। रागिनी जरूर सोच रही थी कि अगर संदीप खुद ये खिलौने ले कर आता है तो फिर तो उसने मुझे जरूर चोदा होगा। फिर भी मैंने रागिनी को कहा, “पूछो”।

“मालिनी जी ये संदीप इस तरह के चूत गांड में ले कर चुदाई जैसे मजे लेने वाले खिलौने आपके पास ले कर आता है, तब तो आप में काफी साफ़-साफ़ बातें भी होती होंगी मेरा मतलब चूत, फुद्दी, गांड जैसी बातें”।

मैंने जवाब दिया, “नहीं रागिनी हममें ऐसी कोई बात नहीं होती। संदीप उम्र में मुझसे कोइ अठारह बीस साल छोटा है। इसलिए ऐसी बात करते हुए शर्माता है। इतना जरूर है कि जब भी ये खिलौने लेकर आता है तो मेरी चूत को घूरता रहता है और अपने पेंट में अपना लंड इधर-उधर करता रहता है”।

“रागिनी ने फिर पूछा, “तो क्या मालिनी जी जब आप उससे ये खिलौने लेती हैं और वो संदीप अपना लंड पेंट में इधर-उधर करता है तो इसका मतलब तो यही हुआ कि वो आपके साथ चुदाई वाला रिश्ता रखना चाहता है। क्या ये सब देख कर आपका भी मन नहीं करता उससे चुदाई करवाने का”?

“मैंने हंसते हुए कहा, “देखो रागिनी, ये सब देख कर मेरी चूत गीली तो हो जाती है, मगर मेरा एक उसूल भी है कि मैं कानपुर में चुदाई बहुत सोच समझ कर करवाती हूं। मैं ऐसे किसी मर्द को घास नहीं डालती, जिसके बारे में मुझे लगे कि एक बार चुदाई करवा कर वो पीछे ही पड़ जाएगा”।

फिर मैंने कुछ रुक कर कहा, “इस बार जब संदीप ये वाले खिलौने लेकर आया था तो चुदाई के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला लग रहा था। इस बार ये पहली बार था कि उसने इन खिलौनों वाला बॉक्स खोल कर ये खिलौना मुझे दिखाया था। इससे पहले मैंने कभी भी उसके सामने बॉक्स नहीं खोला था”।

“फिर मैंने रागिनी की तरफ थोड़ा झुक कर कहा, “वैसे रागिनी इस बार संदीप का लंड उसे कुछ ज्यादा ही तंग कर रहा था”।

“रागिनी ने धीरे से बोली, “कमाल है मालिनी जी, इतना सब होने के बाद भी आपने अपने आप को रोक लिया। मैं होती तो अब तक कब की चूत खोल कर संदीप के सामने लेट चुकी होती”।

“मैंने हंस कर कहा, “चिंता मत कर रागिनी, मैं भी बस संदीप को भांप ही रही हूं। एक दो बार ऐसे ही संदीप अगर आता रहा और मुझे वो ठीक ठाक लगा, तो मैं भी यही करनी वाली हूं”।

“उसी तरह हंसते हुए मैंने कहा, “मैं भी वही करनी वाली हूं जो तुम करती – चूत खोल कर उसके सामने लेट जाती”।

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